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राजà¥à¤¯ उलट जाà¤à¤, à¤à¥‚पों की à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ सà¥à¤²à¤•à¥à¤·à¥à¤®à¥€ सो जाà¤,
पतà¥à¤° गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला,
कही ये तो नहीं की अà¤à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤°à¤¾ ही मेरी किसà¥à¤®à¤¤ थी
जिनसे à¤à¥€ मेरा संपरà¥à¤• रहता है, वो मेरे अपने हैं.
बड़े बड़े पिरवार मिटें यों, à¤à¤• न हो रोनेवाला,
काल पà¥à¤°à¤¬à¤² है पीनेवाला, संसृति है यह मधà¥à¤¶à¤¾à¤²à¤¾à¥¤à¥¤à¥à¥©à¥¤
u see we have a great deal of university pupils who fancy by themselves in hindi poem producing...they do not publish it bcoz of lack Hindi Poem of opportunity or merely bcoz they sense itis just timepass. since they grow up and be a part of jobs the creativeness is stifled from hindi poem on अपना कौन है the rigors of everyday living. Rahul
रागिनियाठबन साकी आई à¤à¤°à¤•à¤° तारों का पà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¾,
कंठबंधे अंगूर लता में मधà¥à¤¯ न जल हो, पर हाला,
अरूण-कमल-कोमल कलियों की पà¥à¤¯à¤¾à¤²à¥€, फूलों का पà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¾,
इतरा लें सब पातà¥à¤° न जब तक, आगे आता है पà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¾,
अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,